
महाशिवरात्रि पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने और रुद्राभिषेक करने का विधान है। ऋग्वेद का प्रसिद्ध और सिद्ध मंत्र है। सहज मंत्र ओम है तो सारी बाधाओं से मुक्ति का महामंत्र महामृत्युंजय मंत्र है। यह मृत संजीवनी है। ऋषि मार्कण्डेय को इसी मंत्र ने अल्पायु से जीवन संजीवनी दी थी। यमराज भी उनके द्वार से वापस चले गए थे।
महामृत्युंजय मंत्र
”त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्”॥
• त्रयंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला
• यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं।
• सुगंधिम = सुगंधित
• पुष्टिः = समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
• वर्धनम् = जो वृद्धि करता है ( स्वास्थ्य, धन, सुख और आनंद)
• उर्वारुकम = ककड़ी (कर्मकारक)
• इव = जैसे, इस तरह
• बन्धनात = तना
• मृत्योः = मृत्यु से
• मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
• मा = न
• अमृतात = अमरता, मोक्ष
अर्थ- हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (मुक्त) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों।
मामृतात और मा-अमृतात ( कृपया इसको प्रमुखता से लें)
इस महामंत्र के अंतिम अक्षर माsमृतात को सर्वाधिक सावधानी से पढ़ना चाहिए। जैसा अर्थ में भी स्पष्ट है यह मामृतात केवल उसी स्थिति में पढ़ा जाएगा जब मोक्ष नहीं मिल रहा हो। प्राण नहीं छूट रहे हों। आयु लगभग पूर्ण हो गई हो। मृत्यु की कामना निषेध है। जीवन की कामना करना अमृत है। लेकिन एसे भी क्षण आते हैं , जब आदमी मृत्यु शैया पर पड़ा होता है,लेकिन परमात्मा से बुलावा नहीं आता। तब यह महामंत्र 33-33 बार तीन बार पढ़ा जाता है। जीवन में अमृत प्राप्ति, कष्टों और रोगों से मुक्ति और जीवन में धन-यश-सुख-शांति के लिए इसको माsमृतात ( मा+ अमृतात) पढ़ा जाता है। जाप संख्या 108।
क्यों है महामंत्र
इस महामंत्र 32 शब्द हैं। ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे’त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। मुनि वशिष्ठजी ने इन 33शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ परिभाषित की हैं। इस मंत्र में आठ वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य और एक वषट हैं।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
कौन कैसे पढ़े महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ। मंत्र निम्नलिखित हैं-
तांत्रिक बीजोक्त मंत्र- ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ ॥ ( साधकों के लिए)
संजीवनी मंत्र : ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ। ( व्यापारियों, विद्यार्थियों और नौकरीपेशा लोगों के लिए विशेष फलदायी)
कालजयी मंत्र: ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥ ( समस्त गृहस्थों के लिए। विशेषकर रोगों से और कष्टों से मुक्ति के लिए)
रोगों से मुक्ति के लिए बीज मंत्र
रोगों से मुक्ति के लिए यूं तो महामृत्युंजय मंत्र विस्तृत है लेकिन आप बीज मंत्र के स्वस्वर जाप करके रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। इस बीज मंत्र को जितना तेजी से बोलेंगे आपके शरीर में कंपन होगा और यही औषधि रामबाण होगी। जाप के बाद शिवलिंग पर काले तिल और सरसो का तेल ( तीन बूंद) चढाएं।
- ॐ हौं जूं सः ( तीन माला)
महामृत्युंजय मंत्र: रखें सावधानी
1. महामंत्र का उच्चारण शुद्ध रखें
2. एक निश्चित संख्या में जप करें।
3. मंत्र का मानसिक जाप करें।
4. पूरे विधि-विधान और धूप-दीप के साथ जाप करें
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
6. माला को गोमुखी में रखें।
7. जप काल में महामृत्युंजय यंत्र की पूजा करें।
8. महामृत्युंजय के जप कुशा के आसन पर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें।
10. महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
महामृत्युंजय पूजन के लाभ-:
- महामृत्युंजय मंत्र के जप और पूजन से शोक, मृत्यु, भय, रोग और दोष का प्रभाव कम एवं पापों का नाश होता है।
- महामृत्युंजय मंत्र का जाप करवाना हर व्यक्ति को केवल लाभ ही पहुंचाता है।
- ऐसा जरूरी नहीं है कि महामृत्युंजय मंत्र के जाप एवं पूजन से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
- ऐसा भी संभव है कि महामृत्युंजय मंत्र के जप एवं पूजन के बाद रोगी की मृत्यु हो जाए और उसे अपने रोगी शरीर से मुक्ति मिल जाए।